गुलज़ार की त्रिवेणिया (Gulzar ki Triveniyan)
गुलज़ार साहब को कौन नही जानता। उनका अपना ही एक अंदाज़ है। देखिये-
सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की
मुस्कराए भी, पुरानी किसी पहचान की खातिर
कल का अखबार था, बस देख भी लिया, रख भी दिया।
कुछ ऐसी ही त्रिवेणियों का संकलन है ये पुस्तक।
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